माँ पार्वती ने क्यों छिन्नमस्ता का रूप धारण किया|Maa Chinnmasta Rajrappa Dham

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क्या आप जानते है माँ छिन्नमस्तिका के बारे में आइये आज हम बात करते है माता के बारे में इनके इस रूप के पीछे की कहानी मां छिन्नमस्तिका देवी मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर को एक अन्य शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। रजरप्पा में स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर 6000 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी की पूजा की जाती है।

मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। रजरप्पा में भैरवी भिड़ और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर भी आस्था का स्थल माना जाता है। यहां सालों भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के दौरान यहां भक्तों की संख्या दोगुनी हो जाती है।

कहा जाता है कि मंदिर के अंदर स्थित देवी काली की मूर्ति के दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में उनका अपना कटा हुआ सिर है वे अपने दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा हुआ सिर दिखा रही हैं। उनके पास डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं, जो रक्त पी रही हैं और माता स्वयं भी रक्त पी रही हैं। उनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं। माता द्वारा सिर काटने के पीछे एक पौराणिक कथा है।

कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सखियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई थीं। उस दौरान स्नान करने के बाद उनकी सखियों को बहुत तेज भूख लगी और वे भूख से व्याकुल होने लगीं। भूख के कारण उनकी सखियों का रंग काला पड़ने लगा। उसके बाद उन दोनों ने माता से भोजन देने के लिए कहा, लेकिन माता ने उत्तर दिया कि वे धैर्य रखें और प्रतीक्षा करें, लेकिन उन्हें इतनी भूख लगी थी कि वे भूख से तड़पने लगीं। इससे मां भवानी ने उनसे कहा, आप शांत हो जाएं, मैं आपको रक्त देती हूं इसके आस-पास एक भी मक्खी नहीं दिखेगी मां के प्रसाद में मटन की होती है |

कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 साल पहले हुआ था और कई लोग इसे महाभारत काल का मंदिर बताते हैं. हर साल नवरात्रि में यहां बड़ी संख्या में साधु-संत और भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर में हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि प्राप्त करते हैं मंदिर रजरप्पा के जंगलों से घिरा हुआ है, जहां दामोदर और भैरवी नदी का संगम भी है. शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा छा जाता है लोगों का मानना ​​है कि मां छिन्नमस्तिका यहां रात में विचरण करती हैं, इसलिए एकांत में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्त करने में लगे रहते हैं दुर्गा पूजा के अवसर पर पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, यूपी समेत कई राज्यों से साधक यहां जुटते हैं और मां छिन्नमस्तिका की विशेष पूजा कर साधना में लीन रहते हैं। झारखंड आएं तो मां के दर्शन जरूर करें छिन्नमस्तिका मंदिर में जाकर आशीर्वाद अवश्य लें और मां के इस रूप के दर्शन एक बार अवश्य करें।

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